हिन्दी विभाग द्वारा दिनांक 16-17 मार्च 2023 को दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया | इस आयोजन में तीन विदेशी वक्ताओं सहित पूरे देश से सैकड़ों की संख्या में वक्ता और प्रतिभागी जुड़े रहे | सेमिनार उदघाटन और समापन के अतिरिक्त चार सत्रों में विभाजित था | जिसके शीर्षक थे -साहित्य और पर्यावरण का अंतर्संबंध, प्रकृति चित्रण से पर्यवारंचिन्तन तक की साहित्यिक यात्रा,विचारधारा और पर्यावरण तथा प्रकृति की ओर लौटो |

'स्मरण में है आज जीवन' 
महादेवी वर्मा और गजानन माधव मुक्तिबोध को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए हिन्दी विभाग के बच्चे व अध्यापक ! 

बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में !

मिट गए पदचिह्न जिन पर हार छालों ने लिखी थी,
खो गए संकल्प जिन पर राख सपनों की बिछी थी,
आज जिस आलोक ने सबको मुखर चित्रित किया है,
जल उठा वह कौन-सा दीपक बिना बाती नयन में !

कौन पन्थी खो गया अपनी स्वयं परछाइयों में,
कौन डूबा है स्वयं कल्पित पराजय खाइयों में,
लोक जय-रथ की इसे तुम हार जीवन की न मानो
कौंध कर यह सुधि किसी की आज कह जाती नयन में।

सिन्धु जिस को माँगता है आज बड़वानल बनाने,
मेघ जिस को माँगता आलोक प्राणों में जलाने,
यह तिमिर का ज्वार भी जिसको डुबा पाता नहीं है,
रख गया है कौन जल में ज्वाल की थाती नयन में ?

अब नहीं दिन की प्रतीक्षा है, न माँगा है उजाला,
श्वास ही जब लिख रही चिनगारियों की वर्णमाला !
अश्रु की लघु बूँद में अवतार शतशत सूर्य के हैं,
आ दबे पैरों उषाएँ लौट अब जातीं नयन में !
बाँच  ली मैंने व्यथा की अनलिखी पाती नयन में ! - महादेवी वर्मा

हिन्दी दिवस के अवसर पर प्रो. रामकुमार मिश्रा जी ने भाषा और साहित्य के अंतर्संबंध पर बहुत ही सारगर्भित व्याख्यान दिया । इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर रिजवानुल्ला की गरिमामय उपस्थिति रही । महाविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजकमल मिश्रा ने इस अवसर पर न केवल कविता पाठ के तरीके पर बातचीत की बल्कि उसे प्रदर्शित भी किया । कार्यक्रम को संभव बनाने में विभागाध्यक्ष डॉ. आभा जायसवाल का अहम योगदान रहा । विभाग की तरफ से आप सभी का हार्दिक आभार !

दिनांक 26/08/2023 को हिंदी विभाग द्वारा  'साहित्य क्यों पढें' विषय पर एकल व्याख्यान का आयोजन किया गया। वक्ता के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कुमार बीरेंद्र ने बहुत ही रोचक और सारगर्भित तरीके से साहित्य की आवश्यक और परिवर्तनकारी भूमिका पर विस्तार से छात्रों से चर्चा की। लगभग 1:30 घंटे तक चले इस व्याख्यान में छात्रों की उपस्थिति और भागीदारी उल्लेखनीय रही। व्याख्यान के अंत में  सवाल- जवाब का एक लंबा सत्र भी चला। इस व्याख्यान को हमारे पेज से लाइव भी किया गया था जिसे लगभग दस लोगों ने शेयर किया। साहित्याभिरूचि के लोग इसे अभी भी फेसबुक पर सुन सकते हैं।