महाविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा "स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है" विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, यह स्त्रियों पर अप्राकृतिक रूप से थोपी गई यौनिकता के खिलाफ सचेत और सटीक प्रतिक्रिया है, जो उनकी बैचेनी और असंतोष को व्यक्त करती है।